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मंगलवार, 10 मार्च 2020

शिक्षाशास्त्र



शिक्षाशास्त्र 


• परिवार की शिक्षा के उद्देश्य स्पष्ट कीजिए अथवा परिवार की शिक्षा के उद्देश्य बताइए?
गृह शिक्षा अथवा परिवार की शिक्षा के निम्न मुख्य उद्देश्य माने जाते हैं-
1. जन्म के समय मानव शिशु हर प्रकार से असहाय एवं अविकसित होता है। परिवार के अन्य सदस्य एवं माता-पिता बच्चे का पालन पोषण करते हैं तथा शरीर का विकास करते हैं।
2. परिवार में जहां एक और बच्चे का पालन पोषण किया जाता है वहीं साथ ही साथ स्वास्थ्य के नियमों की भी शिक्षा दी जाती है, जिससे सुचारू शारीरिक विकास होता रहे।
3. गृह शिक्षा का दूसरा उद्देश्य मानसिक विकास है। परिवार में विभिन्न विषयों को लेकर बातचीत हुआ करती है। बड़े-बूढ़े कहानियां गीत तथा लोकगीत एवं पहेलियां आदि बच्चों को सुनाते हैं इससे बच्चों का मानसिक विकास होता है। इसके अतिरिक्त बच्चों की हर प्रकार की जिज्ञासा की पूर्ति घर पर ही होती रहती है।
4. पारिवारिक शिक्षा का उद्देश्य बच्चों का व्यवसायिक विकास करना भी होता है। प्रत्येक परिवार का कोई न कोई व्यवसाय होता है। बच्चे अपने पारिवारिक व्यवसाय में बड़े सदस्यों का हाथ बंटाया करते हैं इससे वे भी धीरे-धीरे इस व्यवसाय में प्रवीण हो जाते हैं।
5. मानव जीवन में भावनाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। भावनाओं के असामान्य विकास के परिणाम स्वरूप अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। घर पर बच्चों की भावनाओं को सही रूप से विकसित होने का अवसर दिया जाता है। बच्चों के भावनात्मक विकास के लिए घर परिवार द्वारा विभिन्न प्रयास किए जा सकते हैं।
6. शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य बच्चों का चरित्र निर्माण एवं नैतिक विकास भी है। इस उद्देश्य के लिए माता-पिता एवं परिवार के अन्य सदस्यों का चरित्र महान होना चाहिए क्योंकि बच्चे मुख्य रूप से अनुकरण द्वारा ही सीखते हैं।
7. शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य धार्मिक विकास भी है। प्रत्येक परिवार में कुछ धार्मिक गतिविधियां अवश्य होती हैं। बच्चे इनमें शौक से भाग लेते हैं। इससे जहां तक एक ओर धर्म में रुचि जागृत होती है वहीं साथ ही साथ धार्मिक ज्ञान में भी वृद्धि होती है।


• परिवार तथा शिक्षा में संबंध स्पष्ट कीजिए?
परिवार को बालक की शिक्षा का एक महत्वपूर्ण अभिकरण माना गया है इसे बच्चों के प्रारंभिक शिक्षण संस्था के मुख्य रूप में अतिरिक्त महत्व दिया गया है। वास्तव में मानव सिर्फ एक लंबी अवधि तक परिवार में रहता है तथा हर प्रकार से परिवार के अन्य सदस्यों पर निर्भर रहता है। बालक सभी प्रारंभिक बातें परिवार या घर से ही सीखता है। कहा जा सकता है कि प्राणी या जीव से मनुष्य का रूप धारण करने में पूरा-पूरा महत्व परिवार का ही होता है। परिवार के संरक्षण के अभाव में मानव शिशु न तो जीवित ही रह सकता है और ना ही उसका सामाजिकरण ही संभव है।
घर के महत्व को श्री मैजिनी ने अपने शब्दों में इस प्रकार अभिव्यक्त किया है -"बालक नागरिकता का प्रथम पाठ माता के चुंबन और पिता के हृदय आलिंगन के बीच ही पढ़ता है।"
अतः निःसंदेह मानव शिशु की शिक्षा में परिवार का अद्वितीय महत्व है। परिवार बच्चों की शिक्षा की प्रथम तथा सबसे महत्वपूर्ण संस्था है विभिन्न समाजों में यहां शिक्षा संस्थाओं की व्यवस्था नहीं अथवा उन परिवारों में जहां बच्चों को स्कूल आदि में भेज पाना संभव नहीं होता वहां परिवार का शिक्षा संस्था के रूप में महत्व और भी अधिक हो जाता है बच्चों को विभिन्न प्रकार की प्रारंभिक शिक्षा परिवार में रहकर माता-पिता द्वारा ही मिलती है विभिन्न विद्वानों ने शिक्षा के लिए माता के विशेष महत्व का वर्णन किया है।

• जनसंख्या शिक्षा की आवश्यकता बताइए?
जनसंख्या शिक्षा प्रत्येक भारतीय के लिए आवश्यक है।
1. इसकी सबसे बड़ी आवश्यकता परिवार को सीमित रखने के लिए है।
2. यह परिवार कल्याण कार्यक्रमों में लागू करने के लिए सहायक सिद्ध होगी।
3. जीवन की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए भी जनसंख्या शिक्षा आवश्यक है।
4. इसी तरह परिवार को स्वस्थ तथा सुखी बनाने के लिए माताओं को उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करने के लिए।
5. बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए।
6. निरक्षरता उन्मूलन के लिए बेरोजगार की समस्या से बचने के लिए तथा पर्यावरण प्रदूषण के संकट से बचने के लिए जनसंख्या शिक्षा की आवश्यकता है।

• शिक्षा द्वारा अंतरराष्ट्रीय सद्भावना के विकास का वर्णन कीजिए।
यूनेस्को ने अंतरराष्ट्र के लिए शिक्षा के संबंध में विद्यालयों में सामाजिक विज्ञान को माध्यम बनाते हुए ने सिद्धांत प्रस्तुत किए हैं।
1. छात्रों के अंदर आवश्यक मनोवृति व कौशलों का विकास करना।
2. भूगोल में अध्ययन द्वारा छात्रों को प्राकृतिक संपदा का ज्ञान कराना व खाद्य समस्या की जानकारी देना।
3. छात्रों को विभिन्न भाषा सीखने हेतु प्रेरित करना।
4. सामाजिक घटनाओं तनाव सहयोग पर विशेष ध्यान दिया जाए।
5. सामाजिक अध्ययन द्वारा छात्रों को नागरिक का प्रशिक्षण दिया जाएगा व कक्षा विद्यालय तथा समाज ही इस क्षण को देने हेतु प्रयोगशाला का रूप लेगा।
6. छात्रों की तर्क निर्णय व आलोचनात्मक शक्ति का विकास करना।
7. मानव के व्यक्तित्व के समुचित विकास पर बल देते हुए उपयुक्त मानवीय संबंधों को स्थापित किया जाए।
8. यह विषय छात्रों को विश्व के प्रमुख अंगों के बारे में जानकारी देगा।
9. एक समुदाय का दूसरा समुदाय से संबंध बताना।
10. वर्तमान विश्व की सभी समस्याओं में रुचि लेने हेतु छात्रों को प्रेरित करना।
11. विभिन्न धर्म जाति संस्कृत के आधार पर तथा आर्थिक आधार पर पाए जाने वाली विभिन्नता को दूर करना।


• पर्यावरणीय शिक्षा के उद्देश्य लिखिए। अथवा पर्यावरणीय शिक्षा से आप क्या समझते हैं? अथवा पर्यावरणीय शिक्षा क्या है?
पर्यावरण शिक्षा का उद्देश्य यह है कि वह मनुष्य को इस बात की जानकारी दें कि वह अपने पर्यावरण को समझे और उसका समुचित उपयोग करना सीखे। पारिस्थितिक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो। इन बातों को ध्यान में रखते हुए पर्यावरणीय शिक्षा के उद्देश्य का निर्धारण निम्नांकित रूप में किया जा सकता है-
1. प्राणियों को इस बात का बोध कराना कि वे उस व्यवस्था के अभिन्न अंग हैं, जिसमें मानव की संस्कृति तथा भौतिक पर्यावरण आते हैं।
2. उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों की उपयोगिता और उसके दोहन की वर्तमान स्थिति के विषय में मानव समाज को बताना।
3. पारिस्थितिक संतुलन की आवश्यकता और असंतुलन की स्थिति में क्या दुष्परिणाम होंगे इस विषय की जानकारी मानव को देना।
4. जैविक और भौतिक पर्यावरण की गुणवत्ता संबंधी समस्याओं के समाधान में सहयोगी बनाने हेतु जनता की मनोवृत्तियों का विकास करना।
5. पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने की रूचि जागृत करना और उसके उपायों की जानकारी देना।
6. पर्यावरण संतुलन को बिगाड़ने वाले कारकों की पहचान करना।
7. पर्यावरण संरक्षण के लिए अपनाई जाने वाली नूतन तकनीकी से लोगों को अवगत कराना।
8. पारिस्थितिक संतुलन और पर्यावरण संरक्षण के लिए भारत व विश्व स्तर पर बनाए गए नियम कानूनों के विषय में लोगों को अवगत कराना।
• संस्कृति का अर्थ लिखिए। अथवा संस्कृति किसे कहते हैं? अथवा संस्कृति क्या है?
संस्कृति की अवधारणा व्यापक तथा विवादास्पद है। अनेक दृष्टिकोणों में इसकी अगणित व्याख्या मिलती हैं।
संस्कृति का अर्थ शाब्दिक व पारिभाषिक दृष्टि से निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है। शाब्दिक अर्थ संस्कृति का अर्थ अंग्रेजी पर्याय अलवर लैटिन भाषा के कलपूरा से निर्मित है जर्मन भाषा में इसके लिए कल्चर शब्द है इसका शाब्दिक अर्थ परिष्कार करना है।
इसी प्रकार संस्कृत भाषा के संस्कृति शब्द की व्युत्पत्ति पर विचार करने से यह ज्ञात होता है कि संस्कृति शब्द सम उपसर्ग तथा कृ धातु से मिलकर बना है जिसका अर्थ संस्कार करना, शोधन करना या दोषों से मुक्त करना है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि संस्कृति की यह शाब्दिक व्याख्या सीमित व संकुचित है। अब संस्कृति का प्रयोग व्यापक और विस्तृत अर्थ में होता है।
पारिभाषिक अर्थ: मानव शास्त्र में संस्कृति पर विस्तार से विचार हुआ है तथा इस अवधारणा की व्याख्या करते हुए लिखा है- संस्कृति वह जटिल पूर्णता है जिसमें ज्ञान, विश्वास, कला, नैतिकता, कानून तथा सभी प्रकार की आदतें, क्षमताएं सम्मिलित हैं जिन्हें समाज के सदस्य के रूप में प्राप्त किया जाता है।

• रूसो के स्त्री शिक्षा के संबंध में विचार लिखिए।
रूसो-एमिल के अंतिम भाग में एमिल के लिए योग्य पत्नी की शिक्षा का वर्णन है ग्रीस दर्शन के अनुकरण करके रूसो ने स्त्री पुरुष की भिन्न-भिन्न शिक्षा का वर्णन किया है। यह एमील की शिक्षा प्रकृति के अनुसार है तो सोफी कि शिक्षा परंपरागत तथा रूढ़िवादी है या बात भी रूसो के परस्पर विरोधी बातें कहने की परिचायक है। यह शिक्षा की भिन्नता लिंग भेद के कारण है ना की नीति योगिता के अनुसार। लड़के की स्वतंत्रता पर बल था किंतु यहां नियंत्रण पर डॉक्टर जॉनसन ने मिल्टन के विषय में कहा था कि वह स्त्रियों को आज्ञा मानने तथा पुरुष को विद्रोह करने के लिए उत्पन्न मानता था। यह बात रूसो पर भी लागू होती है। इस भिन्नता का एक अर्थ और है कि स्त्री शिक्षा पुरुष की शिक्षा की पूरक हो यह स्वभाव से चालांक होती हैं। दूसरों को उनके इस गुण पर अत्यधिक प्रयोग पर ऐतराज है। रूसो स्त्री को पुरुष के आनंद की जीत समझता है। लिखने-पढ़ने की शिक्षा स्त्री को केवल आवश्यकता अनुभव करने की देनी चाहिए। सिलाई-कढ़ाई वस्त्रों की परख इत्यादि का ज्ञान उसे देना आवश्यक है। स्त्री को धर्म की शिक्षा देनी चाहिए जब वह समझने लगे उसे कम उम्र में धार्मिक ज्ञान देना बुरा नहीं किंतु उसे पूर्ण ज्ञान देना चाहिए तथा ऐसा कि वह धर्म से प्रेम करने लगे स्त्रियां भी तत्वज्ञान तथा तर्क शास्त्र पढ़ सकती हैं पर वह शीघ्र ही भूल जाती हैं परंतु वह नैतिक तथा कलात्मक ज्ञान की प्राप्ति में अद्भुत होती हैं इनके अतिरिक्त भौतिक विज्ञान की केवल सामान्य रूपरेखा पर उनको याद रह जाती है रूसो की प्रकृति के अनुसार शिक्षा का अर्थ बताइए शिक्षा शास्त्र के मर्मज्ञ महोदय ने अपनी पुस्तक डॉक्टरनी ऑफ द ग्रेट एजुकेटर के अंतर्गत रूसो की प्रकृति वादी शिक्षा के निम्न तीन अर्थ बताएं हैं एक प्रकृति के अनुसार शिक्षा से तात्पर्य बालक की आंतरिक भावनाओं के सरल तथा स्वाभाविक विकास से है रूस रूस ऑयल को प्रकृति के अनुकूल ही शिक्षा देना चाहता है किंतु उसका यह अर्थ नहीं कि वह उसे जंगली बना देना चाहता है वास्तव में वह समाज में रहकर भी सामाजिक दोषों से रहित होकर प्राकृतिक जीवन व्यतीत करेगा उसमें 1 पशुओं की भांति इसने और ममता होगी दया तथा परोपकार की भावना होगी नंबर दो प्रकृति का निषेधात्मक अर्थ जिसका तात्पर्य समाज विरोधी प्रवृत्ति से है रूसो के अनुसार समाज आवाज स्वाभाविक प्राकृतिक तथा यंत्र कार्यों और व्यक्तियों का संगठन मात्र है अतः समाज के दुर्गुणों से बचने के लिए तथा सद्गुणों के विकास के लिए बालक को असामाजिक शिक्षा देनी होगी निषेधात्मक शिक्षा का अर्थ शिक्षा का ना देना नहीं वरन बालक को सामाजिक 200 से बचाना है तीन कृत्य के निश्चय आत्मक अर्थ से रूसो का तात्पर्य प्लेटो की भांति आत्मा के उस निरंतर सत्य है जो कि सृष्टि के विकास के अनुरूप ही एकत्रित होकर अपना विकास करता रहता है मनुष्य भी प्रकृति के नियमों पर चलकर अपने को पहचानता है तथा ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करता है इस प्रकार प्रकृति द्वारा शिक्षा ग्रहण कर बालक न केवल अपने भौतिक जीवन को ही सुखी बनाता है वरन आध्यात्मिक महत्व को भी स्वीकार करता है प्रकृति के अनुसार बालक की शिक्षा तभी पूर्ण कही जा सकती है जब वह अपनी आंतरिक शक्तियों के विकास द्वारा सरल समाज में स्वाभाविक जीवन व्यतीत करता हुआ ईश्वर के महत्व को स्वीकार कर सकें।


• टैगोर ने शिक्षा के क्या उद्देश्य दिए हैं?
गुरुदेव द्वारा शिक्षा के उद्देश्य इस प्रकार हैं-
1. एक शारीरिक विकास नैतिक तथा आध्यात्मिक विकास।
2. मानव एकता तथा सत्यता।
3. सामाजिक विकास परिचय।
4. विज्ञान प्राप्त राष्ट्रीयता का विकास।
5. आशीर्वाद का अनुकरण।
6. अंतरराष्ट्रीयता का विकास।


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